खबर लहरिया Blog UP: बुंदेलखंड के खन्ना गांव का जीवित कुआं जो परंपरा, अपनापन और जीवन से भरा हुआ है 

UP: बुंदेलखंड के खन्ना गांव का जीवित कुआं जो परंपरा, अपनापन और जीवन से भरा हुआ है 

खन्ना गांव का यह जीवित कुआं न केवल पानी की जरूरत पूरी कर रहा है बल्कि गांव की आत्मा भी बना हुआ है। 

Village people near the well

कुएँ के पास गांव के लोग (फोटो साभार:श्यामकली

रिपोर्ट-श्यामकली, लेखन-रचना

मैं बुंदेलखंड की रहने वाली हूं। जब मैं खन्ना गांव की भीड़भाड़ वाले कुएं को देखती हूं, तो बचपन और मायके की ढेरों यादें ताज़ा हो जाती हैं। एक समय था जब सुबह की शुरुआत ही कुएं से पानी भरने के साथ होती थी चाहे कड़कड़ाती ठंड हो या चिलचिलाती गर्मी, हम महिलाएं सूरज उगते ही अपने बर्तन लेकर कुएं की ओर निकल जाती थीं।

गर्मी के दिनों में तो मन खुश हो जाता था यह सोचकर कि कुएं का पानी ठंडा होगा। हम पानी पीते, नहाते और थोड़ी राहत पाते। वहीं ठंड के दिनों में भी पानी की जरूरत कम नहीं होती चाहे बर्तन धोने का काम हो या नहाने का। ऐसे में ठंडे पानी से कांपते हुए भी हम कुएं से पानी भरते थे।

आज कई गांवों में ये पुराने कुएं बंद हो गए हैं या सूख चुके हैं लेकिन महोबा जिले के खन्ना गांव में आज भी दो कुएं हैं जो न केवल जीवित हैं, बल्कि सैकड़ों लोगों के जीवन का आधार बने हुए हैं।

खन्ना गांव के सिद्ध बाबा कुएं की कहानी

महोबा जिले के कबरई ब्लॉक स्थित खन्ना गांव में एक कुआं है जिसे लोग “सिद्ध बाबा कुआं” कहते हैं। यह कुआं तीन तरफ से घरों से घिरा है और चौथी ओर तालाब व मैदान है। यहां का नजारा बहुत सुंदर होता है। बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग सभी कुएं के पास इकट्ठा होते हैं। कुआं हमेशा पानी से लबालब भरा रहता है और इसका पानी मीठा होता है।

गांव के चंद्रशेखर प्रजापति बताते हैं कि गांव की कुल आबादी लगभग 10,000 है। यहां दो कुएं हैं जो पूरे गांव के लिए वरदान हैं। विशेषकर सिद्ध बाबा कुएं से रोज करीब एक हजार लोग पानी भरते हैं चाहे मौसम कोई भी हो।

इस कुएं में 12 महीने पानी रहता है। चंद्रशेखर बताते हैं कि यहां के हैंडपंप या तो काम नहीं करते या उनका पानी खारा है। इसी वजह से कुएं का महत्व और बढ़ जाता है। जब उनसे पूछा गया कि इस कुएं की खासियत क्या है, तो उन्होंने कहा, “यह बहुत पुराना कुआं है। इसका पानी कभी सूखता नहीं और स्वाद में बहुत मीठा है। लोग इसे नहाने, पीने और खाना बनाने तक के लिए इस्तेमाल करते हैं।”

Clean water from the well of Khanna village

खन्ना गांव के कुएँ का साफ पानी (फोटो साभार: श्यामकली )

भीड़ और नंबर लगाकर पानी भरने की परंपरा

इस कुएं पर इतनी भीड़ होती है कि लोगों को नंबर लगाकर पानी भरना पड़ता है। महिलाएं लाइन में बैठती हैं, हंसी-ठिठोली करती हैं और दुख-सुख साझा करती हैं। पार्वती नाम की एक बुज़ुर्ग महिला बताती हैं, “हमारी पूरी ज़िंदगी इस कुएं से जुड़ी रही है। पानी भरते-भरते अब ये आदत बन गई है। इससे न केवल शरीर स्वस्थ रहता है बल्कि मन भी खुश रहता है। अगर हम कुएं को छोड़ देंगे तो यह भी सूख जाएगा जैसे बाकी गांवों में हुआ।”

वे आगे कहती हैं कि “इंसान अगर काम करता रहे तो उसका शरीर स्वस्थ रहता है। वैसे ही कुआं भी इस्तेमाल में रहेगा तो वह भी जिंदा रहेगा। जहां कुएं बंद पड़े हैं वहां पानी खारा हो गया है या कुएं टूट चुके हैं।”

कुएं पर मिलने का बहाना, महिलाओं का मन भी बहलता है

रामकुमारी जो मायके से ससुराल आई हैं कहती हैं कि “मायके में तो घर के पास पानी आता था लेकिन यहां कुएं से पानी भरना एक अलग ही अनुभव है। ससुराल में वैसे तो बाहर निकलना मुश्किल होता है लेकिन कुएं पर जाने से कई महिलाएं मिलती हैं, बातें होती हैं, दुख-सुख बांटते हैं। ये सब बहुत सुकून देता है।”

उनके लिए कुआं सिर्फ पानी भरने की जगह नहीं, बल्कि एक सामाजिक केंद्र है। वे कहती हैं कि “जब तक हमारा नंबर नहीं आता, तब तक बैठकर हम मनोरंजन भी कर लेते हैं। यह हमारे दिन का सबसे अच्छा समय होता है।”

woman drawing water from the well

कुएँ से पानी भरती महिला (फोटो साभार: श्यामकली

कुएं से स्वास्थ्य और मेहनत का संबंध

खन्ना गांव के लोग बताते हैं कि चाहे गांव में नल या हैंडपंप की सुविधा आ भी जाए लेकिन पीने के लिए वे आज भी कुएं के पानी पर ही भरोसा करते हैं। इसकी दो वजहें हैं एक तो इसका स्वाद, और दूसरा इससे जुड़ी परंपरा और शुद्धता।

गांव की महिलाएं यह भी मानती हैं कि कुएं से पानी भरना एक तरह का व्यायाम भी है। वे कहती हैं “जैसे शहरों में लोग जिम जाते हैं वैसे हम कुएं से पानी भरते हैं और बर्तन सिर पर रखकर आधा किलोमीटर पैदल चलते हैं। हमें थकान भी नहीं होती क्योंकि ये रोज की आदत है।”

Women and children carrying water from the well

कुएँ से पानी ले जाते बच्चे और महिलाएं (फोटो साभार: श्यामकली)

परंपरा को जिंदा रखने की मिसाल है खन्ना गांव

खन्ना गांव का यह जीवित कुआं न केवल पानी की जरूरत पूरी कर रहा है बल्कि गांव की आत्मा भी बना हुआ है। यह सिर्फ जल स्रोत नहीं बल्कि एक परंपरा, एक भावना और एक सामाजिक जुड़ाव का केंद्र है।

आज जब दुनिया आधुनिक सुविधाओं की तरफ दौड़ रही है तो खन्ना गांव ने अपनी जड़ों को नहीं छोड़ा। इस गांव के लोग यह सिखाते हैं कि अगर हम अपने पारंपरिक संसाधनों को सहेजें और उनका सही उपयोग करें तो न केवल पर्यावरण बचेगा बल्कि समाज भी आपस में जुड़ा रहेगा।

 

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