भारत को साफ-सुथरा और खुले में शौच से मुक्त करने के लिए केंद्र सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन शुरू की थी। इस योजना के तहत गरीब परिवारों को अपने घर में शौचालय बनवाने के लिए ₹12,000 की मदद दी जाती है।
रिपोर्ट – सुमन, लेखन – कुमकुम
इसका मकसद था कि गांवों की महिलाएं, बहुएं और बेटियां खुले में शौच जाने से बचें और गांव भी शहरों की तरह साफ-सुथरे बनें। लेकिन पटना जिले के दानापुर ब्लॉक की कासिमचक पंचायत के बड़का हरशामचक गांव की सच्चाई सरकार के इस दावे से बिलकुल अलग है।
क्या हम इस योजना के लायक नहीं हैं
पटना जिले के दानापुर ब्लॉक में कासिमचक पंचायत का बड़का हरशामचक गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। इस गांव में रहने वाली सोना देवी कच्चे मकान में रहती हैं। वह अपने घर के सामने नाले के पास खड़ी होकर कहती हैं, मैडम, देखिए मेरा घर कैसा है। क्या मैं सरकार की योजना का लाभ लेने लायक नहीं हूं? क्या सरकार हमारे जैसे लोगों के लिए योजना नहीं बनाती क्या ये योजनाएं सिर्फ कागजों तक सीमित हैं क्या ये सिर्फ चुनाव और वोट के लिए बनाई जाती हैं
मेरे दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। मेरे पति मेहनत-मजदूरी करने हर रोज सुबह 6 बजे पटना चले जाते हैं और रात को 7-8 बजे लौटते हैं। हमें उम्मीद थी कि शायद सरकार की मदद से शौचालय मिल जाएगा, जिससे कम से कम शौच के लिए बाहर न जाना पड़े। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
सुबह पति को समय पर खाना देने के लिए हमें जल्दी उठना पड़ता है, लेकिन सबसे पहले तो इंसान को शौच जाना होता है। यहां से खेतों तक पहुंचने में ही आधा घंटा लगता है, और पूरा काम निपटाने में डेढ़ घंटा चला जाता है। इससे खाना बनाने में देर हो जाती है, और अगर पहले खाना बना लें, तो दिन निकल आता है और फिर शौच जाना मुश्किल हो जाता है। यही हमारी रोज की परेशानी है।
सदियों से खेतों पर जा रहे लोग, आज भी नहीं मिला शौचालय का अधिकार
सदियों से हम लोग खेतों में ही शौच के लिए जाते आ रहे हैं, ये कहना है बड़का हरशामचक गांव के हरिशंकर का। वह एक कच्ची झोपड़ी के नीचे बिछी खटिया पर लेटे हुए थे और गांव की दशा पर खुलकर बात कर रहे थे।
हमारे घर के सामने करीब 20 से 25 ऐसे घर हैं,जिनके पास आज भी शौचालय नहीं है। सब लोग खेतों में ही जाते हैं। मैं जिस घर के पास बैठा हूं, उसके बगल में एक घर है जहां इस महीने दो नई बहुएं आई हैं। उन्हें भी खेतों में ही जाना पड़ता है क्योंकि घर में शौचालय नहीं बना है।
हरिशंकर खुद किसान हैं। वह बताते हैं कि खेती से पेट नहीं भरता, इसलिए पटना मजदूरी करने जाना पड़ता है। ऐसे में शौचालय बनवाने के लिए समय, पैसा और सुविधा कहां से लाएं हर साल बाढ़ आती है, घर टूट जाते हैं, पानी भर जाता है। शौचालय बनवाने की बात तो दूर, घर बचाना ही मुश्किल हो जाता है।
हमारी किस्मत ही यही है खेतों में शौच जाने को मजबूर गांव की महिलाएं
मैडम, हमारी किस्मत ही यही है। हमें तो जिंदगी भर खेतों में ही जाना है यह बात कहते हुए कलावती देवी खेतों की ओर इशारा करती हैं। वह बताती हैं कि खेत गांव से लगभग 500 मीटर दूर हैं, और वही उनकी सुबह की शुरुआत का ठिकाना भी।
मेरी बच्चियां भी वहीं जाती हैं। पड़ोस की महिलाएं भी वहीं जाती हैं। सुबह अंधेरे में निकल जाते हैं, ताकि कोई देख न ले। अगर सूरज चढ़ गया, तो फिर और दूर जाना पड़ता है।
वह बताती हैं कि वार्ड मेंबर भले ही दावा करें कि शौचालय बने हैं, लेकिन उन्हें खुद अब तक कोई लाभ नहीं मिला। मैं वार्ड नंबर तीन में आती हूं, लेकिन मुझे शौचालय नहीं मिला।
शौचालय न होने से शादी में भी आती है दिक्कत
अगर आप सच में जानना चाहते हैं कि हम कैसे जीते हैं, तो एक दिन हमारे घर रुक जाइए, यह बात कहते हुए सीता देवी मुस्कुरा रही थीं। वह उस वक्त नाखून काट रही थीं और गांव की हकीकत बेझिझक बयान कर रही थीं।
सीता देवी बताती हैं कि गांव में अब तक सरकार की कोई भी योजना पूरी तरह से नहीं पहुंची है। कागज भरवाते हैं, फोटो खींचते हैं, आधार कार्ड लेते हैं फिर बोलते हैं सब कुछ हो जाएगा। लेकिन बिना पैसे दिए यहां कुछ नहीं होता। पहले पैसा दो, तभी फॉर्म आगे बढ़ेगा, नहीं तो सालों तक इंतज़ार करते रहो।
वह बताती हैं कि गांव के लड़कों की शादी अब शहर की लड़कियों से नहीं हो पाती। शहर की लड़की को शौचालय चाहिए। अगर हम कहें कि खेत में जाना होगा तो शादी टूट जाती है या लड़की शादी के बाद घर छोड़ कर चली जाती है। इसलिए हम गांव की ही लड़कियां ढूंढते हैं, जिन्हें पहले से पता हो कि यहां शौचालय नहीं है, और उन्हें खेतों में जाने से परहेज न हो।
पास ही के घर की तरफ इशारा करती हैं, इस घर में अभी इसी महीने दो नई बहुएं आई हैं। वह भी खेतों में जा रही है।
फॉर्म भरवा दिए हैं, जल्द मिलेगा शौचालय का लाभ
बड़का हरशामचक गांव के नवनिर्वाचित मुखिया विनोद कुमार से फोन पर बातचीत में उन्होंने बताया कि गांव में खासकर वार्ड नंबर 4 में बड़ी संख्या में परिवार ऐसे हैं जिनके पास आज भी शौचालय नहीं है।
स्वच्छ भारत मिशन के तहत 12 हजार रुपये की सहायता दी जाती है, लेकिन इसके लिए पहले व्यक्ति को अपने खर्च से शौचालय बनवाना होता है। फिर सर्वे होता है, फोटो खींचे जाते हैं, और आवेदन पत्र (फॉर्म) भरवाया जाता है। इसके बाद ही पैसा खाते में आता है।
उन्होंने बताया कि कुछ समय से सरकारी वेबसाइट काम नहीं कर रही थी, इस वजह से फॉर्म भरने की प्रक्रिया रुकी हुई थी। अब वह प्रक्रिया दोबारा शुरू हो चुकी है।
जिनका फॉर्म भरा गया है, उन्हें जल्द लाभ मिलेगा। मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं कि ज्यादा से ज्यादा जरूरतमंद परिवारों को योजना का लाभ दिला सकूं।
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