1962 में झारखंड के गुमला जिले में जन्मी, सोनाझरिया महज़ 5 साल की थीं जब एक इंग्लिश मीडियम स्कूल ने उनकी आदिवासी पहचान और उनके पिता के प्रोटेस्टेंट होने के कारण उन्हें दाखिला देने से मना कर दिया।
भारत के लिए गर्व की बात है कि झारखंड की आदिवासी महिला डॉ सोनाझरिया मिंज को यूनेस्को (UNESCO) की को-चेयर पर्सन नियुक्त किया गया है। यह पहली बार है जब किसी भारतीय महिला को इस महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय पद पर चुना गया।उनकी यह उपलब्धि ने न केवल झारखंड बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है।
क्या है यूनेस्को चेयर
यूनेस्को चेयर एक अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक पद है, जो दुनिया भर के विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में शिक्षा, संस्कृति, सतत विकास और मानवाधिकार जैसे यूनेस्को के महत्वपूर्ण विषयों पर वैश्विक सहयोग ज्ञान साझा करता है और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देता है। 125 से अधिक देशों में 1,000 से ज्यादा यूनेस्को चेयर हैं। यह कार्यक्रम दुनिया भर के विश्वविद्यालयों और शोधकर्ताओं के साथ मिलकर ज्ञान और अनुभव साझा करने का एक मंच है।
पढ़ाई में सफर
पढ़ाई के सफर में उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से मास्टर्स किया, JNU से कंप्यूटर साइंस में एमफिल और पीएचडी की। उन्होंने JNU में प्रोफेसर बनने के साथ-साथ पहली आदिवासी महिला यूनिवर्सिटी वाइस चांसलर (सिदो-कान्हू मुर्मु विश्वविद्यालय, दुमका) बनने का इतिहस रचा।
उन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त की है। वे आईआईटी कानपुर से पीएचडी कर चुकी हैं और कंप्यूटर साइंस की विशेषज्ञ हैं।
वे कई सालों तक शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत रही हैं। वे सिदो-कानहू मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका की कुलपति भी रही हैं। वे शिक्षा, नवाचार और समाज के वंचित वर्गों के लिए काम करना उनका मुख्य उद्देश्य रहा है। अब वे यूनेस्को जैसे प्रतिष्ठित वैश्विक संस्थान में भारत की ओर से पहली आदिवासी सह-अध्यक्ष के रूप में चुनी गई हैं। वे कनाडा की डॉ. एमी पैरेंट के साथ मिलकर स्वदेशी समुदायों के ज्ञान, अधिकार, भाषा और आत्मनिर्णय पर काम करेंगी। 1989 से अब तक यूनेस्को ने 1000+ चेयर नियुक्त किए, लेकिन अब तक भारत का कोई भी आदिवासी प्रतिनिधि इनमें शामिल नहीं था।
कहानी झारखंड की सोनाझरिया मिंज की
सोनाझरिया मिंज झारखंड की है। वे उरांव समुदाय की हैं। संथाल जनजाति के बाद झारखंड में भारत की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति उरांव समुदाय है। कई भारतीय राज्यों में लगभग 3.6 मिलियन लोगों का समूह है जिसमें से 1.7 मिलियन अकेले झारखंड में रहते हैं। डॉ. मिंज की मातृभाषा कुरुख है, और वह अपने वंश को मिंज (मछली) कबीले से जोड़ती हैं।
आदिवासी पहचान के कारण नहीं दिया स्कूल में दाखिला
द मकनायक के एक रिपोर्ट में उन्होंने बताया हैं कि कैसे सोनाझरिया महज़ 5 साल की थीं जब एक इंग्लिश मीडियम स्कूल ने उनकी आदिवासी पहचान और उनके पिता के प्रोटेस्टेंट होने के कारण उन्हें दाखिला देने से मना कर दिया।
वे बताती हैं अपनी आदिवासियत की वजह से मिन्ज को 5 साल की नन्ही उम्र में एक इंग्लिश मीडियम स्कूल में दाखिला नहीं मिल सका था। इसका कारण उनकी आदिवासी पहचान और उनके पिता का प्रोटेस्टेंट पादरी होना था, जो उस कैथोलिक स्कूल के प्रशासन को स्वीकार्य नहीं था। इस घटना ने उनके मन पर गहरी छाप छोड़ी। उन्होंने कहा, “ मैं सिर्फ़ पाँच साल की थी, लेकिन मुझे समझ में आ गया कि मुझे उस स्कूल में दाखिला इसलिए नहीं मिला क्योंकि मैं आदिवासी थी। मुझे नहीं पता कि मैं भेदभाव को समझती थी या नहीं, लेकिन मैं वंचना को समझती थी। मुझे पता था कि मैं आदिवासी होने की वजह से किसी चीज़ से वंचित थी और इसलिए मैं जानती थी कि मैं एक ऐसे सामाजिक क्षेत्र से हूँ जिसे भविष्य में भी भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है। मुझे पता था कि मुझे हतोत्साहित किया जा सकता है, इसलिए मैं यह सुनिश्चित करना चाहती थी कि मैं अपनी क्षमता का निर्माण कर सकूं और उस पर भरोसा कर सकूं। मैंने उन्हें गलत साबित करने का संकल्प लिया।”
इसलिए जब मिंज कक्षा एक में थी और उसने अपनी शिक्षिका को यह कहते हुए सुना कि वह एक अच्छी शिक्षिका बनेगी, तो उसे लगा कि यह एक भविष्यवाणी है, “मैं गणित में अच्छी थी, इसलिए मैंने तुरंत फैसला किया कि मैं बड़ी होकर गणित की शिक्षिका बनूँगी।” मिंज कहती हैं कि जब उन्होंने स्कूल में दाखिला लिया तो उन्हें भाषा की बहुत समस्या थी और यह एक ऐसा विषय था जिससे उन्हें जूझना पड़ा। दूसरी ओर, गणित आसान था। इसके लिए उन्हें हिंदी जानने की ज़रूरत नहीं थी, लेकिन इसलिए उन्हें यह पसंद आया और उन्होंने तय किया कि वे इसमें सर्वश्रेष्ठ बनेंगी।
झारखंड मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने क्या कहा
मुख्यमंत्री ने उन्हें यूनेस्को की को-चेयर पर्सन नियुक्त किए जाने पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं दीं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि यह झारखंड के लिए गर्व का विषय है कि डॉ. मिंज जैसे विदुषी महिला को यह अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी मिली है। उन्होंने विश्वास जताया कि डॉ. सोनाझारिया मिंज यूनेस्को में सह-अध्यक्ष के रूप में आदिवासी भाषा, संस्कृति, विरासत और ज्ञान प्रणाली को वैश्विक मंच पर मजबूती से प्रस्तुत करेंगी।
सोनाझरिया मिंज की यह उपलब्धि बताती है कि अगर मेहनत और लगन हो तो कोई भी मंजिल दूर नहीं। सोनाझरिया मिंज समाज के जातिवाद स्थिति को भी पीछे करते हुए आगे निकल गईं। वे आज भारत के लिए और भारत के जातिवाद में फसे समाज के लिए भी प्रेरणा स्रोत है कि किसी के दबाने और नीचा दिखाने से झुकना नहीं उसका मुक़ाबला करना है और उन्हें जवाब देना है।
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